हनुमान चालीसा मूलतः अवधी भाषा में लिखी गई थी, लेकिन इसे कई भाषाओं में अनुवादित किया गया है, जिनमें संस्कृत भी शामिल है। संस्कृत, जो हिन्दू धर्म की धार्मिक और शास्त्रीय भाषा है, में हनुमान चालीसा का पाठ करना एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
हनुमान चालीसा भारतीय भक्तिकाव्य की एक अमूल्य रचना है, जिसे महान संत गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा था। यह 40 छंदों का एक स्तोत्र है, जो भगवान हनुमान को समर्पित है, जो भक्ति, शक्ति और सेवा के प्रतीक माने जाते हैं। प्रत्येक छंद भगवान हनुमान के आशीर्वाद की प्रार्थना करता है और उनके अद्वितीय बल, निष्ठा और भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति का वर्णन करता है।
Hanuman Chalisa In Sanskrit In Sanskrit
Name | Hanuman Chalisa In Sanskrit |
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Language | Sanskrit |
Tags | Hanuman Chalisa |
Category | Religion & Spirituality |
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हनुमान चालीसा का महत्व
हनुमान चालीसा का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से शांति, शक्ति और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। भगवान हनुमान भक्ति और शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं, और चालीसा का पाठ करना उनके मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने का सशक्त माध्यम है।
Hanuman Chalisa In Sanskrit
हनुमान् चालीसा संस्कृत
दोहा:
श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनऊं रघुवर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
हृद्दर्पणं नीरजपादयोश्च गुरोः पवित्रं रजसेति कृत्वा ।
फलप्रदायी यदयं च सर्वम् रामस्य पूतञ्च यशो वदामि ॥
बुद्धि हीन तनु जानिकै सुमिरौं पवनकुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु क्लेश विकार ॥
स्मरामि तुभ्यम् पवनस्य पुत्रम् बलेन रिक्तो मतिहीनदासः ।
दूरीकरोतु सकलं च दुःखम् विद्यां बलं बुद्धिमपि प्रयच्छ ॥
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय कपीस तिहुं लोक उजागर ।
जयतु हनुमद्देवो ज्ञानाब्धिश्च गुणागरः ।
जयतु वानरेशश्च त्रिषु लोकेषु कीर्तिमान् ॥ (१)
रामदूत अतुलित बलधामा
अन्जनि पुत्र पवनसुत नामा ।
दूतः कोशलराजस्य शक्तिमांश्च न तत्समः ।
अञ्जना जननी यस्य देवो वायुः पिता स्वयम् ॥ (२)
महावीर विक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी ।
हे वज्राङ्ग महावीर त्वमेव च सुविक्रमः ।
कुत्सितबुद्धिशत्रुस्त्वम् सुबुद्धेः प्रतिपालकः ॥ (३)
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुण्डल कुंचित केसा ।
काञ्चनवर्णसंयुक्तः वासांसि शोभनानि च ।
कर्णयोः कुण्डले शुभ्रे कुञ्चितानि कचानि च ॥ (४)
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै
कांधे मूंज जनेऊ साजे ।
वज्रहस्ती महावीरः ध्वजायुक्तस्तथैव च ।
स्कन्धे च शोभते यस्य मुञ्जोपवीतशोभनम् ॥ (५)
संकर सुवन केसरी नन्दन
तेज प्रताप महाजगबन्दन ।
नेत्रत्रयस्य पुत्रस्त्वं केशरीनन्दनः खलु ।
तेजस्वी त्वं यशस्ते च वन्द्यते पृथिवीतले ॥ (६)
विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबै को आतुर ।
विद्यावांश्च गुणागारः कुशलोऽपि कपीश्वरः ।
रामस्य कार्यसिद्ध्यर्थम् उत्सुको सर्वदैव च ॥ (७)
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मन बसिया ।
राघवेन्द्रचरित्रस्य रसज्ञः सः प्रतापवान् ।
वसन्ति हृदये तस्य सीता रामश्च लक्ष्मणः ॥ (८)
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा ।
वैदेही सम्मुखे तेन प्रदर्शितस्तनुः लघुः ।
लङ्का दग्धा कपीशेन विकटरूपधारिणा । (९)
भीम रूप धरि असुर संहारे
रामचन्द्र के काज संवारे ।
हताः रूपेण भीमेन सकलाः रजनीचराः ।
कार्याणि कोशलेन्द्रस्य सफलीकृतवान् कपिः ॥ (१०)
लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुवीर हरषि उर लाए ।
जीवितो लक्ष्मणस्तेन खल्वानीयौषधम् तथा
रामेण हर्षितो भूत्वा वेष्टितो हृदयेन सः ॥ (११)
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई
तुम मम प्रिय भरत सम भाई ।
प्राशंसत् मनसा रामः कपीशं बलपुङ्गवम् ।
प्रियं समं मदर्थं त्वम् कैकेयीनन्दनेन च ॥ (१२)
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ।
यशो मुखैः सहस्रैश्च गीयते तव वानर ।
हनुमन्तं परिष्वज्य प्रोक्तवान् रघुनन्दनः ॥ (१३)
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा ।
सनकादिसमाः सर्वे देवाः ब्रह्मादयोऽपि च ।
भारतीसहितः शेषो देवर्षिः नारदः खलु ॥ (१४)
जम कुबेर दिगपाल जहां ते
कबि कोबिद कहि सकहि कहां ते ।
कुबेरो यमराजश्च दिक्पालाः सकलाः स्वयम् ।
पण्डिताः कवयः सर्वे शक्ताः न कीर्तिमण्डने ॥ (१५)
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा ।
उपकृतश्च सुग्रीवो वायुपुत्रेण धीमता ।
वानराणामधीपोऽभूद् रामस्य कृपया हि सः ॥ (१६)
तुम्हरो मन्त्र विभीषण माना
लंकेश्वर भए सब जग जाना ।
तवैव चोपदेशेन दशवक्त्रसहोदरः ।
प्राप्नोति नृपत्वं सः जानाति सकलं जगत् ॥ (१७)
जुग सहस्र जोजन पर भानू
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।
योजनानां सहस्राणि दूरे भुवः स्थितो रविः ।
सुमधुरं फलं मत्वा निगीर्णः भवता पुनः ॥ (१८)
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं
जलधि लांघि गए अचरज नाहिं ।
मुद्रिकां कोशलेन्द्रस्य मुखे जग्राह वानरः ।
गतवानब्धिपारं सः नैतद् विस्मयकारकम् ॥ (१९)
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।
यानि कानि च विश्वस्य कार्याणि दुष्कराणि हि ।
भवद्कृपाप्रसादेन सुकराणि पुनः खलु ॥ (२०)
राम दुआरे तुम रखवारे
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।
द्वारे च कोशलेशस्य रक्षको वायुनन्दनः ।
तवानुज्ञां विना कोऽपि न प्रवेशितुमर्हति ॥ (२१)
सब सुख लहै तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना ।
लभन्ते शरणं प्राप्ताः सर्वाण्येव सुखानि च ।
भवति रक्षके लोके भयं मनाग् न जायते ॥ (२२)
आपन तेज सम्हारो आपे
तीनो लोक हांक ते कांपै ।
समर्थो न च संसारे वेगं रोद्धुं बली खलु ।
कम्पन्ते च त्रयो लोकाः गर्जनेन तव प्रभो ॥ (२३)
भूत पिसाच निकट नहिं आवै
महाबीर जब नाम सुनावै ।
श्रुत्वा नाम महावीरं वायुपुत्रस्य धीमतः ।
भूतादयः पिशाचाश्च पलायन्ते हि दूरतः ॥ (२४)
नासै रोग हरै सब पीरा
जो समिरै हनुमत बलबीरा ।
हनुमन्तं कपीशं च ध्यायन्ति सततं हि ये ।
नश्यन्ति व्याधयः तेषां पीडाः दूरीभवन्ति च ॥ (२५)
संकट ते हनुमान छुडावै
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ।
मनसा कर्मणा वाचा ध्यायन्ति हि ये जनाः ।
दुःखानि च प्रणश्यन्ति हनुमन्तम् पुनः पुनः ॥ (२६)
सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा ।
नृपाणाञ्च नृपो रामः तपस्वी रघुनन्दनः ।
तेषामपि च कार्याणि सिद्धानि भवता खलु ॥ (२७)
और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै ।
कामान्यन्यानि च सर्वाणि कश्चिदपि करोति यः ।
प्राप्नोति फलमिष्टं सः जीवने नात्र संशयः॥ (२८)
चारो जुग परताप तुम्हारा
है प्रसिद्ध जगत उजियारा ।
कृतादिषु च सर्वेषु युगेषु सः प्रतापवान् ।
यशः कीर्तिश्च सर्वत्र दोदीप्यते महीतले ॥ (२९)
साधु सन्त के तुम रखवारे
असुर निकन्दन राम दुलारे ।
साधूनां खलु सन्तानां रक्षयिता कपीश्वरः ।
असुराणाञ्च संहर्ता रामस्य प्रियवानर ॥ (३०)
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस वर दीन जानकी माता ।
सिद्धिदो निधिदः त्वञ्च जनकनन्दिनी स्वयम् ।
दत्तवती वरं तुभ्यं जननी विश्वरूपिणी ॥ (३१)
राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा ।
कराग्रे वायुपुत्रस्य चौषधिः रामरूपिणी ।
रामस्य कोशलेशस्य पादारविन्दवन्दनात् ॥ (३२)
तुम्हरे भजन राम को पावै
जन्म जन्म के दुख बिसरावै ।
पूजया मारुतपुत्रस्य नरः प्राप्नोति राघवम् ।
जन्मनां कोटिसङ्ख्यानां दूरीभवन्ति पातकाः ॥ (३३)
अन्त काल रघुवर पुर जाई
जहां जन्म हरिभक्त कहाई ।
देहान्ते च पुरं रामं भक्ताः हनुमतः सदा ।
प्राप्य जन्मनि सर्वे हरिभक्ताः पुनः पुनः ॥ (३४)
और देवता चित्त न धरई
हनुमत सेइ सर्व सुख करई ।
देवानामपि सर्वेषां संस्मरणं वृथा खलु ।
कपिश्रेष्ठस्य सेवा हि प्रददाति सुखं परम् ॥ (३५)
संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।
करोति सङ्कटं दूरं सङ्कटमोचनः कपिः ।
नाशयति च दुःखानि केवलं स्मरणं कपेः ॥ (३६)
जय जय हनुमान गोसाईं
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ।
जयतु वानरेशश्च जयतु हनुमद् प्रभुः ।
गुरुदेवकृपातुल्यम् करोतु मम मङ्गलम् ॥ (३७)
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बन्दि महासुख होई ।
श्रद्धया येन केनापि शतवारं च पठ्यते ।
मुच्यते बन्धनाच्छीघ्रम् प्राप्नोति परमं सुखम् ॥ (३८)
जो यह पढै हनुमान चालीसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा ।
स्तोत्रं तु रामदूतस्य चत्वारिंशच्च सङ्ख्यकम् ।
पठित्वा सिद्धिमाप्नोति साक्षी कामरिपुः स्वयम् ॥ (३९)
तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ।
सर्वदा रघुनाथस्य तुलसी सेवकः परम् ।
(सर्वदा रघुनाथस्य रवीन्द्रः सेवकः परम्)
विज्ञायेति कपिश्रेष्ठ वासं मे हृदये कुरु ॥ (४०)
दोहा:
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
विघ्नोपनाशी पवनस्य पुत्रः कल्याणकारी हृदये कपीश ।
सौमित्रिणा राघवसीतया च सार्धं निवासं कुरु रामदूत ॥
हनुमान चालीसा के अर्थ और भावार्थ
हनुमान चालीसा के प्रत्येक छंद में भगवान हनुमान की महानता का वर्णन किया गया है। इसमें उनकी शारीरिक शक्ति, ज्ञान और भगवान राम के प्रति उनकी अटूट निष्ठा का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसे विभिन्न भागों में बांटा जा सकता है:
1. प्रारंभिक प्रार्थना:
पहले कुछ छंदों में गुरु की वंदना की गई है, जिसमें बुद्धि और स्पष्टता की प्रार्थना की गई है। भक्त अपने मन और हृदय को पवित्र करते हुए भक्ति को शुद्ध रखते हैं।
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥
इस छंद में भक्त गुरु (शिक्षक या आध्यात्मिक मार्गदर्शक) का आशीर्वाद मांगते हैं, यह प्रार्थना करते हुए कि उनका मन स्पष्ट और निर्मल हो, ताकि वे सत्य को सही तरीके से समझ सकें।
2. हनुमान के गुण:
अनेक छंदों में भगवान हनुमान के शारीरिक और मानसिक गुणों का वर्णन किया गया है, जैसे उनकी शक्ति, साहस और भगवान राम के प्रति उनकी अटूट भक्ति।
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
इस छंद में हनुमान को “महावीर” (महान वीर) और “बजरंगी” (वज्र के समान बलवान) कहा गया है। वे बुरी बुद्धि को दूर करने वाले और अच्छी बुद्धि के साथी माने जाते हैं।
3. हनुमान के कार्य और भक्ति:
कई छंदों में रामायण के महान कार्यों का वर्णन किया गया है, जहां भगवान हनुमान ने भगवान राम की मदद की और सीता को रावण के बंदीगृह से मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
इस छंद में हनुमान को भगवान राम के दूत के रूप में सम्मानित किया गया है, और वे अंजनी और पवन के पुत्र माने जाते हैं, जिनमें असीम शक्ति है।
4. रक्षा और मुक्ति की प्रार्थना:
अंतिम छंदों में भगवान हनुमान से सुरक्षा और मुक्ति की प्रार्थना की गई है। यह छंद उन भक्तों के लिए है जो हनुमान की भक्ति और आशीर्वाद के माध्यम से जीवन की समस्याओं से छुटकारा पाना चाहते हैं।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥
यह छंद यह कहता है कि हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं और महान सुख की प्राप्ति होती है।
हनुमान चालीसा के पाठ के लाभ
भक्तों का मानना है कि हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करने से कई आध्यात्मिक और व्यावहारिक लाभ मिलते हैं:
- नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा: भगवान हनुमान को रक्षक माना जाता है और उनके भक्तों का विश्वास है कि चालीसा का पाठ बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा प्रदान करता है।
- साहस और आत्मविश्वास: हनुमान के गुण जैसे शक्ति, निर्भयता और भक्ति उन लोगों को प्रेरित करते हैं जो चालीसा का पाठ करते हैं, ताकि वे अपने जीवन की चुनौतियों का सामना साहसपूर्वक कर सकें।
- ध्यान और स्पष्टता: चालीसा मानसिक शांति प्रदान करता है और परेशानियों में स्पष्टता और शांति लाता है।
- दैवीय आशीर्वाद: यह विश्वास है कि चालीसा का पूर्ण श्रद्धा से पाठ करने से भगवान हनुमान के आशीर्वाद प्राप्त होते हैं, जिससे जीवन में सफलता, अच्छा स्वास्थ्य और समृद्धि मिलती है।
संस्कृत में हनुमान चालीसा: एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति
हालांकि हनुमान चालीसा मूल रूप से अवधी भाषा में लिखी गई है, परंतु कई विद्वान और भक्त इसे संस्कृत में पढ़ना पसंद करते हैं, क्योंकि संस्कृत को हिन्दू धर्म में एक पवित्र भाषा माना जाता है। संस्कृत को देवताओं की भाषा कहा जाता है और इस भाषा में धार्मिक स्तोत्रों का पाठ करने से शब्दों की आध्यात्मिक शक्ति और बढ़ जाती है।
श्रीहनुमानचालीसाया: सामान्यप्रश्नाः (FAQs)
1. हनुमानचालीसा का अस्ति?
हनुमानचालीसा ४० श्लोकानां स्तोत्रमस्ति, यत् गोस्वामी तुलसीदासेन श्रीहनुमते समर्पितमस्ति। एतत् स्तोत्रं श्रीरामभक्ते हनुमानस्य स्तुतिं करोति।
2. कथं “चालीसा” इति नाम किमर्थं अस्ति?
“चालीसा” शब्दस्य अर्थः चत्वारिंशत् अस्ति, यः संस्कृते चत्वारिंशत् (४०) श्लोकानाम् संख्यां सूचयति। अतः, एतस्मिन् स्तोत्रे चत्वारिंशत् श्लोकाः सन्ति।
3. हनुमानचालीसा कस्य काव्यं किमया विरचितम्?
हनुमानचालीसा महाकविना गोस्वामिना तुलसीदासेन १६ शतके विरचिता अस्ति। तेन एव रामचरितमानसस्य रचनापि कृता।
4. हनुमानचालीसा पाठेन कः लाभः?
हनुमानचालीसा पाठेन भक्तानाम् अनेकाः आध्यात्मिकाः लाभाः भवन्ति, यथा:
- नकारात्मकशक्तिभ्यः रक्षणं।
- बलं, धैर्यं च प्राप्तिः।
- रोगाणां निवृत्तिः, कष्टनिवारणं च।
- मानसिकशान्तिः आध्यात्मिकवृद्धिश्च।
5. कदा हनुमानचालीसा पठनीयम्?
हनुमानचालीसा यदा कदा अपि पठितुं शक्यते, किन्तु प्रभाते सायं वा पठनं विशेषं फलदायकं भवति। मङ्गलवासरे शनिवासरे च पाठं कर्तुं विशेषफलं भवति।
6. हनुमानचालीसा का भाषा किम्?
हनुमानचालीसा मूलतः अवधी भाषायां लिखिता अस्ति, या संस्कृते, हिन्दी, आङ्ग्लभाषायां च अनूदिता अस्ति।
7. कति वारं हनुमानचालीसा पठितुं युक्तम्?
विशिष्टसंख्या नास्ति, किन्तु भक्ताः सामान्यतः हनुमानचालीसां १०८ वारं पठन्ति, यः हिन्दुधर्मे पवित्रा संख्या मण्यते। कतिचित् जनाः सप्तवारं वा एकादशवारं पठन्ति।
8. संस्कृतेन हनुमानचालीसापाठस्य विशेषः कः?
संस्कृतेन पाठः आध्यात्मिकशक्तिं वर्धयति, यत् संस्कृतं हिन्दुधर्मस्य पवित्रभाषा अस्ति। संस्कृतवाक्यानां उच्चारणेन विशेषतया आध्यात्मिकविकासः भवति।
9. किम् महिलाः अपि हनुमानचालीसां पठन्तुं शक्नुवन्ति?
आम्, महिलाः अपि हनुमानचालीसां पठन्तुं शक्नुवन्ति। एतस्य पाठे स्त्रीपुरुषयोः विशेष: नियमः नास्ति, सर्वे भक्ताः एतत् स्तोत्रं पठन्तुं शक्नुवन्ति।
10. हनुमानचालीसापाठात् पूर्वं किमपि विशेषतया कर्तव्यम्?
विशेषः नियमः नास्ति, किन्तु स्नानं कृत्वा स्वच्छवस्त्राणि धृत्वा पाठः कर्तुं युक्तमस्ति। दीपं प्रज्वालयित्वा पुष्पाणि समर्पयित्वा ध्यानं कृत्वा पाठः कर्तुं फलप्रदं भवति।
11. कस्मिन् कठिनकाले हनुमानचालीसां पठेत्?
हनुमानचालीसा विशेषतः कठिनसमयेषु पाठनीया अस्ति, यदा कष्टानां, शत्रुभ्यः वा समस्याभ्यः रक्षणाय प्रार्थना क्रियते।
12. किम् हनुमानचालीसाया: शब्दानां अर्थज्ञानं आवश्यकं किम्?
अर्थज्ञानं पठने विशेषं अनुभवं ददाति, किन्तु आवश्यकं नास्ति। भक्त्या युक्तः पाठः महत्त्वपूर्णः अस्ति, न कि पूर्णं शब्दार्थज्ञानम्।
13. कति दिवसाः हनुमानचालीसापाठाय श्रेष्ठाः भवन्ति?
मङ्गलवासरः शनिवासरश्च पाठाय श्रेष्ठाः मण्यन्ते। एते द्वौ दिवसौ श्रीहनुमते विशेषतः समर्पितौ सन्ति।
14. किम् मूकपाठः हनुमानचालीसाया: कर्तुं शक्यते वा?
आम्, मनसि मूकपाठः वा मुखेन पाठः कर्तुं शक्यते। उभे पाठने आध्यात्मिकः लाभः अस्ति।
15. हनुमानचालीसापाठे यदि मिष्टिः क्रियते, तर्हि किं कर्तव्यम्?
यदि मिष्टिः क्रियते, तर्हि पुनः शुद्धेन मनसा पाठः आरभ्यते। हनुमानः करुणामयः अस्ति, तेन भक्तिः एव सर्वाधिकं महत्त्वं वहेति।
16. किम् विशेषेण आसनेन पाठः कर्तव्यो वा?
विशिष्टः आसनः न आवश्यकः अस्ति, किन्तु कतिचित् जनाः सुखासनं पद्मासनं वा धारयित्वा पाठं कुर्वन्ति। हनुमत्प्रतिमायाः समक्षं वा ध्यानमग्नं पाठं कर्तुं अधिकं फलप्रदमस्ति।